Monday, March 28, 2011

LOVE

जब दिल में ईश्वर के लिए प्रेम होता है तो उसकी बनाई हर वस्तु से प्रेम हो जाता है. इस किस्से से यह बात सिद्ध होती है -

महात्मा बुद्ध के समय का ज़िक्र है कि एक चरवाहा भेड़-बकरियों का झुण्ड लेकर चला जा रहा था. एक बकरा लंगड़ा था और धीरे-धीरे चल रहा था. चरवाहा उसे झुण्ड के साथ करने के लिए डंडे मरता था. महात्मा बुद्ध ने देखा और बहुत दुखी हुए. उस पर दया दिखाते हुए चरवाहे से पूछा, "तुझे जाना कहाँ है?" उसने कहा कि वह जो सामने पहाड़ी दिखाई देती है, मैं वहां रोज़ बकरियां चरता हूँ. बस वहां जाना है. महात्मा बुद्ध ने कहा कि अगर मैं इस लंगड़े बकरे को उठा कर वहां छोड़ आऊं तो तुझे कोई एतराज तो न होगा. उसने हंसते हुए कहा ,"नहीं". महात्मा बुद्ध ने बकरे को उठा कर उस पहाड़ी पर बाकि भेड़ों के साथ छोड़ दिया. बकरे का कुछ समय के लिए दूर हो गया. 

महात्मा को सब से प्यार होता है, पशु, पक्षी या अन्य कोई भी जीव हो.


परन्तु हम ईश्वर वंदना का ढोंग करते हैं, और ईश्वर कि बनाई सबसे खुबसूरत रचना ' इन्सान ' से ही नफरत करने लगते हैं. तो अन्य जीवों से प्रेम तो दूर कि बात है

Friday, March 25, 2011

SUNEET SARDANA


The strangest topic i got to write and that is SUNEET SARDANA... Oh GOD! what you did to us??? well a small introduction will be that he is my junior. Yeah! a student of MA 1st year. But if you ask him, his answer will be this-
SUNEET SARDANA 
photo journalist 
pura sach

wah ji wah! feels good. He is from elnabaad. he always keeps a big fat tummy and a big bag with him. I dont know that what is inside his tummy. Ya But i do have small knowledge about his bag. he has laptop,atm cards almost of every bank and those are without cash, rail-bus passes, 2 tiffin (some time 1 and half) etc. Suneet has a great knowledge. He always tries to share it with others. he wants to help others in any manner and he does so. 
But as everybody knows excess of everything is bad. Not sometimes almost everytime he behaves so weird.
he forces you to listen to him either you want to or not. Even he does not care.
this coin also  has a third side. many times he solved my problem. He is always ready to help you. He experiments new thing with his cell and laptop.
I think this is enough for this time.....
all the best SUNEET

Thursday, March 24, 2011

UGC's coaching scheme for students

बढ़ती प्रतिस्पर्धा के समय में विद्यार्थियों के लिए यूजीसी ने विशेष कोचिंग स्कीम शुरू की है. इस कोचिंग स्कीम की जानकारी डॉ. राजकुमार सिवाच ने भावी पत्रकारों को कार्यशाला के दौरान दी.  समाज के पिछड़े वर्ग- अनुसूचित जाति, जनजाति, गरीब जो कि पीले कार्ड धारक हैं, महिलाएं  व ओबीसी  इस स्कीम के लाभार्थी हैं. इस कोचिंग के लिए चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय में एक सैल का निर्माण किया गया है. इस स्कीम को ३ भागों में विभाजित किया गया है.पहला रिमिडियल जिसमें कि विद्यार्थी जिस विषय में कमजोर हैं उसकी अलग से कोचिंग ले सकता है. दूसरी एंटी इन्टू सर्विसेस जिसमें नौकरियों की परीक्षाओं की तैयारी करवाई जाएगी. तीसरी में नेट और स्लेट की कोचिंग दी जाएगी. इस स्कीम में विद्यार्थिओं को पढ़ने के साथ पढ़ाने का मौका भी मिल रहा है. चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय में इसकी शुरुआत २२ फरवरी २०११ को हुई थी. अब तक ४०० से अधिक कक्षाएं लगायीं जा चुकी हैं. सिवाच ने बताया कि परिणाम हर प्रकार से सकारात्मक हैं. एक विद्यार्थी के प्रश्न पर सिवाच ने कहा कि विद्यार्थियों में तैयारी  की कमी है. उन्हें प्रेरित करने की आवश्यकता है. व्यावहारिक ज्ञान की कक्षाओं से जुड़े सवाल पर सिवाच ने कहा की इसके लिए भी बात चल रही है. ये कक्षाएं ३१ मार्च २०१२ तक चलेंगीं. सिवाच ने अंत में कहा कि विद्यार्थियों को ज्यादा से ज्यादा इस स्कीम का लाभ उठाना चाहिए.  

ALOK TOMAR

पत्रकारिता के क्षेत्र में भाषा के स्तर पर नए मुहावरे जड़ने वाला अब कोई नहीं होगा. क्योंकि पत्रकारिता में धाक जमाने वाले अलोक तोमर अब हमारे बीच नहीं रहे. तोमर स्वभाव से मनमौजी और जिद्दी थे. अपनी कमल पर उनकी जबरदस्त पकड थी.
पोलिटिकल एडिटर के रूप में कार्य कर रहे अलोक तोमर लगभग २३ वर्षों से मिडिया जगत से जुड़े थे. हिंदी व अंग्रेजी दोनों भाषाओँ पर अच्छी पकड़ रखते थे. बहुत से लोग यह नहीं जानते कि तोमर, अमिताभ बच्चन के सुप्रसिद्ध कार्यक्रम के लिए  भी लिख चुके हैं. 
दिसम्बर १९६० में मध्य प्रदेश के भिंड में अलोक का जन्म हुआ. विज्ञानं में स्नातक और हिंदी साहित्य में ग्वालियर विश्वविद्यालय से अधिकतम अंकों से स्नातकोतर हुए.  
अलोक के करियर कि शुरुआत ग्वालियर के एक दैनिक पत्र स्वदेश से हुई.उन्होंने univarta दिल्ली में, डेस्क पर  ११ महीनों में १००  एक्सक्लूसिव स्टोरीज़ की.  १९८३ में जनसत्ता में शामिल हुए. ६ वर्षों में ७ पदोन्नतियां हासिल की.  १९९३ में जनसत्ता छोड़ दी. दैनिक भास्कर जैसे कई मुख्य अख़बारों के लिए लिखते रहे. rediff.कॉम के राजनैतिक  पत्रकार के रूप में भी कार्य किया. १९९१ से १९९८ तक जी न्यूज़ के चुनाव प्रोग्राम के लिए लिखा.तोमर को आज तक- टीवी टुडे ने सन २००० में चैनल की लॉन्च के समय consultant के रूप में आमंत्रित किया. होम टीवी के १०० से अधिक शोज़ के लिए भी लिखा. इसके अलावा ndtv , zee , दूरदर्शन के कई कार्यक्रमों व धारावाहिकों के लिए भी लिखते रहे. ugc के मीडिया एक्सपर्ट भी थे. 
पत्रकारिता से जुडी ५ पुस्तकें अलोक ने लिखी.
भावी पत्रकारों  के लिए वे एक मिसाल हैं.

Friday, March 18, 2011

HaPpY HoLi


Let the GOD decorate each GOLDEN RAY of the SUN reaching u with wishes of success, happiness & prosperity for YOU.....
wish YOU a SUPER DUPER HAPPY HOLI.


रंगों का यह खुबसूरत त्यौहार इस वर्ष १९-२० मार्च को मनाया जा रहा है. भारतीय परम्परा के अनुसार होली २ दिन का उत्सव है. पहले दिन शाम के समय होलिका दहन का आयोजन होता है. इस दिन कुछ लोग व्रत भी करते हैं और सांय काल होलिका जलने ने पूर्व होलिका की पूजा की जाती है. भारत में अनेक रंग हैं, और और इन रंगों की तरह ही होली का यह त्यौहार भी विभिन्न तरीकों से ही मनाया जाता  है. होलिका को दहन करने व पूजा-व्रत के भी  विभिन्न तरीके हैं. होलिका दहन का मुख्य आधार एक पौराणिक कथा है. यह प्रहलाद और उसके नास्तिक पिता  ह्रिन्यकश्यप की कहानी है जो अपने ही पुत्र को मरवाने के लिए उसे आग में झोंक देता है. वैसे इस कथा से लगभग होली मानाने वाला हर भारतीय परिचित ही होगा. इसके बाद होली के दुसरे दिन फाग खेली जाती है. इसे ही असल में रंगों का त्यौहार कहा जाता है. रंग गुलाल से सबके गालों को रंगा जाता है. यह त्यौहार परस्पर प्रेम का प्रतीक है जब सभी मित्र रिश्तेदार मिल कर इक दूजे को रंग लगाते हैं. कुछ लोग गुजिया, कांजी भल्ले, मिठाइयाँ इत्यादि पकवान भी बनाते हैं. बच्चे गुब्बारों और पिचकारियों में रंग और पानी भर कर खेलते गलियों में घूमते हैं.फाग को भी अलग अलग तरीके से मनाया जाता है. कहीं फूलों की होली खेली जाती है तो कहीं लठ मार होली तो कहीं भाभी देवर पर कोड़ों की भी बरसात कर  देती है. ऐसा है ये त्यौहार. परन्तु कभी कभी हमारी लापरवाही हमारे लिए मुसीबत भी बन जाती है. आँख में रंग चले जाना, चोट लग जाना, सगे सम्बन्धी का बुरा मन जाना ये सब भी होली का एक रंग है और हमें इस से बचके ही रहना चाहिए . इसलिए हमें ये त्यौहार प्रेमभाव और सावधानी के साथ ही मानना चाहिए. 
आपको और आपके परिवार को होली के पर्व पर बहुत सी शुभकामनाएं.....    

Wednesday, March 16, 2011

BLOG-PERSONAL DAIRY

भविष्य के सपनों को साकार करने का बेहतरीन तरीका है ब्लॉग लिखना. अच्छे लेखन से आप घर बैठे लाखों रूपये अर्जित कर सकते हैं. विद्यार्थियों को ब्लॉग से जुड़ी यह सारी जानकारी sunilnehra.com के  सम्पादक सुनील नेहरा ने चौधरी देवी लाल विश्व विद्यालय के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग में चल रही १५ दिवसीय कार्यशाला में दी. नेहरा ने कार्यशाला के पहले चरण में ब्लॉग का इतिहास तथा उस से जुड़े तथ्यों से परिचित करवाया. ब्लॉग जिसे ऑनलाइन डायरी भी कहा जाता है, की शुरुआत सन २००० में हुई और सन २००४ में इसमें  तेजी से सक्रियता बढ़ी. उन्होंने बताया की ब्लोगिंग के पिता अमित अग्रवाल को कहा जाता है.इसके  अतिरिक्त ब्लॉग के ज़रिये नाम व धन कमाने वाले चर्चित भारतीय नामों में अमित भवानी, ओम, हर्ष अग्रवाल,जसपाल सिंह,निर्मल, राहुल बंसल इतियादी हैं, जो लाखों में कमाई कर रहे हैं. लेखन के विषय पर नेहरा ने कहा कि लेखन का कार्य जूनून से करें. बिना रूचि के लिखना मुश्किल है इसलिए रूचि के विषयों पर लिखना शुरू करें. कार्यशाला के दुसरे चरण में विद्यार्थियों ने नेहरा से कई सवाल किये. भाषा के चुनाव से जुड़े प्रश्न पर नेहरा ने कहा कि अंग्रेजी भाषा में लिखना बेहतर विकल्प है साथ ही अंग्रेजी में लिखने से कमाई ज्यादा व जल्दी होगी. जहाँ तक अंग्रेजी सीखने की बात है तो लिखते लिखते ही अभ्यास हो जायेगा.  सामग्री से जुड़े प्रश्न पर उन्होंने कहा के नक़ल की गयी सामग्री कभी भी न डालें, स्वयं लिखें, अच्छा लिखें ताकि आपको अधिक से अधिक लोग पढ़ें. एक विद्यार्थी ने उनके अनुभव के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे भटक भटक कर ही सीखें हैं. आपको किसी भी प्रकार कि ब्लॉग से जुड़ी कोचिंग कहीं पर भी नहीं मिलेगी, खुद मेहनत करें और सीखें. अंत में विभागाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह चौहान ने सुनील नेहरा को धन्यवाद दिया और कहा कि भविष्य में ब्लोगिंग विद्यार्थियों के लिए एक बेहतर विकल्प साबित  होगा.

Sunday, March 13, 2011

ENGLISH IS MUST

ऐसा नहीं है कि हमें अंग्रेजी नहीं आती है! यह केवल एक भय है और इसे भगाने के लिए अभ्यास बहुत  ज़रूरी है! चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग में १५ दिवसीय प्रिंट व् साइबर मीडिया कार्यशाला में यह बात अमेरिकन इंस्टिट्यूट के प्रशिक्षक सतपाल सिंह ने कही! सतपाल सिंह अंग्रेजी के समाचार पत्र हिंदुस्तान टाइम्स के पत्रकार के रूप में भी कार्य कर रहे हैं! अंग्रेजी भाषा के प्रयोग को लेकर अधिकतर हिंदी भाषियों के मन में संकोच होता है! इसी विषय पर सतपाल सिंह ने विभाग के विद्यार्थियों से बातचीत की और उनकी बहुत सी शंकाए भी दूर की ! उन्होंने कहा कि अंग्रेजी से भय न करें! अपने आप को निपुण बनाने के लिए अधिक से अधिक अंग्रेजी पुस्तकें, अखबार व पत्रिकाएँ पढ़े! पढ़ने के साथ अंग्रेजी लिखने की आदत भी होनी चाहिए! सतपाल सिंह ने कहा कि अंग्रेजी सब को आती है केवल शब्दों की कमी होती है! यह रिक्त स्थान भरने जैसा है, और हमें इसी का अभ्यास करना है ! उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया कि जिस प्रकार तैरना सीखने के लिए पानी में उतरना आवश्यक होता है उसी प्रकार अंग्रेजी बोलना सीखने के लिए अंग्रेजी का माहौल बनाना और अभ्यास करना ज़रूरी होता है! इसके लिए हमें स्वयं पहल करनी होगी व मिलकर वातावरण बनाना होगा! उन्होंने कहा कि पत्रकार को हर क्षेत्र का थोड़ा थोड़ा ज्ञान होना चाहिए, इसके लिए विद्यार्थियों को पढ़ना चाहिए! अच्छे शब्दों का ज्ञान होना चाहिए ताकि भाषा का स्तर ऊँचा रहे! एक विद्यार्थी के सवाल पर सतपाल सिंह ने कहा कि विद्यालयों में पढ़ाई जाने वाली अंग्रेजी केवल एक विषय है, वह साहित्यिक अंग्रेजी होती है! इसके विपरीत बोली जाने वाली अंग्रेजी अभ्यास से सीखी जा सकती है! उन्होंने कहा कि रात को सोने से पहले अंग्रेजी के कुछ पन्ने ज़रूर पढ़े! यदि लिखने कि आदत डालेंगे तो ओर भी बेहतर होगा! अंग्रेजी सीखाने वाली अनेक पुस्तकें बाज़ार में उपलब्ध हैं, परन्तु उन्हें पढ़ लेने से सफलता नहीं मिलेगी! साथ ही उन्होंने कहा कि हमें हमेशा केन्द्रित रहना चाहिए! कार्यशाला के अंत में विभागाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह चौहान  ने सतपाल सिंह का धन्यवाद दिया और कहा कि पत्रकार के लिए हिंदी पर पकड़ जरुरी है परन्तु बेहतर रोजगार व वेतनमान के लिए अंग्रेजी की आधारभूत जानकारी भी परम आवश्यक है! उन्होंने कहा कि सत सिंह द्वारा बताई गयी बातों को ध्यान में रखते हुए कार्यशाला में अंग्रेजी का अभ्यास भी विद्यार्थियों को करवाया जायेगा! 

Friday, March 11, 2011

opposites are the complementry

'विपरीत ही एक दुसरे के पूरक हैं' त्रिवेणी शिक्षा संस्थान के सचिव  ओमप्रकाश ने इन्ही शब्दों को अपने पूरे जीवन के अध्ययन  का निष्कर्ष बताया ! ओमप्रकाश  चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग के विद्यार्थियों के मार्गदर्शन के लिए आयोजित कार्यशाला में पहुंचे! १५ दिवसीय कार्यशाला में जिज्ञासु विद्यार्थियों ने ओमप्रकाश  से 'व्यक्तित्व विकास एवं शिक्षा' के विषय पर प्रश्न किये! पहले चरण में उन्होंने अपने विद्यार्थियों को विस्तारपूर्वक समझाया कि उनके द्वारा निकाला  गया निष्कर्ष उन्होंने अपने जीवन में भी अनुभव किया है! यह बात उन्होंने अनेक उदाहरण देते हुए समझाई! उनके अनुसार यदि जीवन में दुःख है तो आने वाले समय में सुख भी है! सुख व् दुःख एक दुसरे के पूरक हैं! उन्होंने साईकिल चलाने  का अपना अनुभव साझा किया कि शुरुआत में उन्हें काफी परेशानी व् चोट का सामना करना पड़ा परन्तु अंत में उन्होंने सफलता प्राप्त की! इसी प्रकार उन्होंने सफलता-असफलता, सकारात्मक-नकारात्मक   शब्दों के उदाहरण से अपनी बात का महत्व बताया!ओमप्रकाश ने कहा कि हर बात के दो पहलू होते हैं और वे एक दुसरे के पूरक भी होते हैं! जो बात सच है उस का विपरीत भी सच ही होगा! सकारात्मक और नकारात्मक   हमेशा इकट्ठे चलते हैं! विद्यार्थी जीवन का मूलमंत्र जूनून और सब्र ही है, इसी बात पर उन्होंने  कहा कि अपने काम पर  शत प्रतिशत  दें तभी सफलता  मिलेगी! दुसरे चरण में विद्यार्थियों ने उनसे  कई प्रश्न किए!  मन व मस्तिष्क में से किस की  बात सुनी जाये इस प्रश्न पर ओमप्रकाश ने कहा कि चीजों को वैसे ही लें जैसी कि वो हैं! हमारी निगाह हमेशा कमियों पर रहती है इनकी बजाये हमें अच्छाई को देखना चाहिए ! जीवन में असमंजस की स्थिति आने पर केवल लक्ष्य की  ओर केन्द्रित रहें! विद्यार्थी के एक सवाल पर उन्होंने आत्म विश्वास को बढ़ाने का एक सरल तरीका  ध्यान योग को बताया, जिसका अभ्यास कार्यशाला के दौरान ही करवाया गया! अंत में विभागाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह चौहान ने ओमप्रकाश का धन्यवाद देते हुए कहा कि उनका मार्ग दर्शन विद्यार्थियों के जीवन में लाभप्रद साबित होगा!