दीपावली! दिवाली! मस्ती का त्यौहार! बचपन से ही जब यह त्यौहार आता रहा है दिल में, दिमाग में एक उत्साह सा जाग जाता है! दीपों का यह त्यौहार हर साल खुशियाँ ले कर आता है, क्योंकि इस त्यौहार को छोटे बड़े अमीर गरीब सब उत्साह के साथ मिलजुल कर मानते हैं! अब इस त्यौहार को भारतीय कैसे मानते हैं? ये बताने की ज़रूरत मुझे महसूस नहीं हो रही है! हम भारतीय भली भांति जानते हैं के यह त्यौहार पूजन पाठ के लिए विशेषकर लक्ष्मी पूजन के लिए है, या कहें दीपों का त्यौहार है , या रौशनी का त्यौहार, या यह भी कह सकते हैं के खुशियों का त्यौहार!!!! परन्तु बदलते समय की हम बात करें तो इस त्यौहार के मायने दिन-ब-दिन बदलते जा रहे हैं! अब यह त्यौहार व्यापार का त्यौहार बनता जा रहा है! लोग त्यौहार का इंतज़ार सिर्फ सेल का फायदा उठाने के लिए, पटाखों का शोर शराबा करने के लिए, दिखावा करने के लिए, जुआ खेलने के लिए करते हैं! वो स्नेह, उत्साह, श्रधा कहीं गम हो गये हैं! दीपों का स्थान इलेक्ट्रिक लाइटों ने ले लिया है!
आने वाली पीढ़ी को तो इस त्यौहार का असली रूप देखने को मिलेगा ही नहीं!! हम हमारी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं! ऐसा क्यों हो रहा है?? क्या दीपों की माला केवल टीवी कार्यकर्मों का अंश बन कर रह जाएगी?? हम सिर्फ दिखावे और मस्ती नाच गाने के लिए यह त्यौहार मानते रहेंगे??
वो दीपावली कहाँ गयी?? उसे फिर से खोजना आवश्यक है!!!
No comments:
Post a Comment